खिड़की...। खिड़की...।
अपनों का साया हर दुख-दर्द दूर कर देता है। अपनों का साया हर दुख-दर्द दूर कर देता है।
जिंदगी का खेल भी शतरंज की बिसाख पर है बिछा पड़ा जिंदगी का खेल भी शतरंज की बिसाख पर है बिछा पड़ा
शैतानी देख कहती, खाना अब न दूँगी तुझे, फिर मार मार के माँ का खिलाना अच्छा लगता है. शैतानी देख कहती, खाना अब न दूँगी तुझे, फिर मार मार के माँ का खिलाना अच्छा लगता ह...
जहॉं बहे फिज़ा लेकर जज़्बात, वहॉं बसे इश्क हर सॉंस में...! जहॉं बहे फिज़ा लेकर जज़्बात, वहॉं बसे इश्क हर सॉंस में...!
मिल जाएं अगर तुमसे बेहतर चंद लम्हों में आशिक बदलता है। मिल जाएं अगर तुमसे बेहतर चंद लम्हों में आशिक बदलता है।